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शनिवार, 8 अक्तूबर 2011

कमाल कर दिखाया केसरी ने

सीताराम केसरी निश्चय ही बधाई के हकदार हैं कि जिस काम को पिछली सरकारें करीब 40 साल से टालती आ रही थीं, उसे कर दिखाने का उन्होंने साहस किया। राजनैतिक पंडित कह रहे हैं कि यह काम आगामी चुनाव को ध्यान में रखकर किया गया है। वैसे ही, जैसे यह कहा गया था कि विश्वनाथ प्रताप सिंह ने देवीलाल को राजनैतिक मात देने के लिए मंडलास्त्र छोड़ा था। हो सकता है, दोनों बातें अपनी जगह सही हों पर केवल इसी कारण इस विषय का महत्त्व कम नहीं हो जाता और लोकतांत्रिाक व्यवस्था में लोकप्रिय काम चुनाव के गणित को ध्यान में रखकर ही किए जाते हैं।

सच यह है कि देश जिस आर्थिक दिशा की ओर बढ़ रहा है उस व्यवस्था में सरकार के हाथों से काम देने की शक्ति दिन-ब-दिन छिनती जाएगी। यह भी सच है कि इस तरह के आरक्षण से पीढि़यों के सामाजिक अन्याय की समाप्ति नहीं हो जाएगी। पर सच यह भी है कि इन तर्कों के आधार पर आरक्षण का विरोध मूलतः वही लोग करते हैं जिन्हें सामाजिक न्याय के सिद्धांत में बिल्कुल विश्वास नहीं है। आरक्षण से संपूर्ण सामाजिक न्याय की प्राप्ति नहीं हो सकती, पर इसके बिना आप उस दिशा में बढ़ भी नहीं सकते।

सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्ग को आरक्षण की सुविधा देनी है और इस वर्ग की पहचान का एकमात्रा आधार जाति हो सकती है। इस वास्तविकता को सुप्रीम कोर्ट से लेकर कांग्रेस, भाजपा तथा वामपंथियों तक ने समझ लिया है। उसी तरह अब उन लोगों को भी उस वास्तविकता को समझ लेना चाहिए कि आरक्षण की सुविधा शैक्षिक और सामाजिक रूप से पिछड़ों को बराबरी तक लाने के ही लिए दी जानी चाहिए न कि एक नया विशेषाधिकार प्राप्त वर्ग खड़ा करने के लिए। सामाजिक न्याय के संघर्ष और एक नए सुविधाभोगी वर्ग की यथास्थितिवादी चाहत में अन्तर तो करना ही पड़ेगा। इसलिए यह बात कम-से-कम सिद्धांत रूप में तय हो जानी चाहिए कि एक सीमा के बाद उन सारे लोगों को अपनी बैसाखियां उन लोगों के लिए छोड़नी पड़ेंगी जिन्हें इनकी जरूरत उनसे ज्यादा है। मलाईदार परत के सिद्धांत को इस रूप में देखना चाहिए।

सरकार द्वारा घोषित आरक्षित नीति के साथ जुड़ी मलाईदार परत की सूची से असहमति या आपत्ति हो सकती है पर सिद्धांत रूप में इसे मानने में किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए। इस सूची की सबसे बड़ी खामी यह है कि इसमें राजनीतिकों के साथ पक्षपात किया गया है। पिछड़ी जाति का कोई व्यक्ति राष्ट्रपति बन जाए तो उसकी संतान को आरक्षण का लाभ नहीं मिलेगा, परंतु पिछड़ी जाति के प्रधानमंत्री की संतान आरक्षण की सुविधा प्राप्त करती रहेगी, यह आसानी से गले उतरने वाली बात नहीं है। लेकिन सूची की अच्छी बात यह है कि मलाई हटाने का काम लगातार चलता रहेगा।

मलाईदार परत हटाने का काम सिर्फ नौकरियों के आरक्षण के मामले में ही नहीं, अन्य क्षेत्रों में भी प्रारंभ होना चाहिए, खास तौर पर उद्योग और वाणिज्य के क्षेत्रा में भी इसको तत्काल लागू किया जाना चाहिए।

मलाईदार परत हटाने का काम नौकरियों में आरक्षण नीति लागू होने के साथ किया जा रहा है। इससे विश्वास बन सकता है कि सचमुच यह प्रयास सामाजिक न्याय दिलाने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम हो सकता है। कांग्रेस में जैसा ब्राह्मणवाद आज चल रहा है वैसा इससे पहले शायद ही कभी था। उस प्रतिकूल माहौल में भी सीताराम केसरी ने इतना बड़ा काम कर लिया है, तो उनसे उम्मीद की जा सकती है कि यादव, कुर्मी, कोइरी तथा लोध जैसी पिछड़ी जातियों में अगड़ी जातियों के मुखर विरोध के बावजूद मलाईदार परत हटाने के अपने वादे से पीछे नहीं हटेंगे।

30 सितंबर 1992, इंडिया टुडे, मतांतर

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