“तो ये थी खबरें आजतक, इंतजार कीजिए कल तक।”
एसपी यानी सुरेंद्र प्रताप सिंह के कई परिचयों में यह भी एक परिचय था। दूरदर्शन पर प्रसारित कार्यक्रम आज तक के संपादक रहते हुए एसपी सिंह सरकारी सेंसरशिप के बावजूद जितना यथार्थ बताते रहे, उतना फिर कभी किसी संपादक ने टीवी के परदे पर नहीं बताया।
एसपी आज तक के एंकर-संपादक ही नहीं थे। अपने दमखम के लिए याद की जाने वाली रविवार पत्रिका के पीछे संपादक सुरेंद्र प्रताप सिंह की ही दृष्टि थी। दिनमान की विचार पत्रकारिता को रविवार ने खोजी पत्रकारिता और स्पॉट रिपोर्टिंग से नया विस्तार दिया। राजनीतिक-सामाजिक हलचलों के असर का सटीक अंदाज़ा लगाना और सरल, समझ में आने वाली भाषा में साफगोई से उसका खुलासा करके सामने रख देना उनकी पत्रकारिता का स्टाइल था। एक पूरे दौर में पाखंड और आडंबर से आगे की पत्रकारिता एसपी के नेतृत्व में ही साकार हो रही थी।
शायद इसी वजह से उन्हें अभूतपूर्व लोकप्रियता मिली और कहा जा सकता है कि एसपी सिंह पत्रकारिता के पहले और आखिरी सुपरस्टार थे। यह बात दावे के साथ इसलिए कही जा सकती है क्योंकि अब का दौर महानायकों का नहीं, बौने नायकों और तथाकथित नायकों का है।
एसपी जब जब संपादक रहे, उन्होंने कम लिखा। वैसे समय में पूरी पत्रिका, पूरा समाचार पत्र, पूरा टीवी कार्यक्रम उनकी जुबान बोलता था। लेकिन उन्होंने जब लिखा तो खूब लिखा, समाज और राजनीति में हस्तक्षेप करने के लिए लिखा।
जन पक्षधरता एसपी सिंह के लेखन की केंद्रीय विषयवस्तु है, जिससे वे न कभी बाएं हटे, न दाएं। इस मामले में उनके लेखन में जबर्दस्त निरंतरता है। एसपी सिंह अपने लेखन से सांप्रदायिक, पोंगापंथी, जातिवादी और अभिजन शक्तियों को लगातार असहज करते रहे। बारीक राजनीतिक समझ और आगे की सोच रखने वाले इस खांटी पत्रकार का लेखन आज भी सामयिक है।
महानायक पत्रकार सुरेंद्र प्रताप सिंह की रचनाओं का यह पहला संचयन है। यह पुस्तक राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली ने प्रकाशित की है। इसे ऑनलाइन खरीदने के लिए यहां देखें।
ये थी खबरें आजतक,इंतजार कीजिए कल तक. एसपी यानी सुरेंद्र प्रताप सिंह। दूरदर्शन कार्यक्रम आज तक के संपादक एसपी सिंह जितना यथार्थ बताते रहे, उतना फिर कभी किसी संपादक ने टीवी पर नहीं बताया।रविवार पत्रिका की खोजी पत्रकारिता के पीछे उन्हीं की दृष्टि थी।राजनीतिक-सामाजिक हलचलों के असर का सटीक अंदाज़ा लगाना और सरल भाषा में उसका खुलासा कर देना उनका स्टाइल था।पाखंड से आगे की पत्रकारिता के माहिर थे एसपी।पत्रकारिता के पहले और आखिरी महानायक एसपी के लेखन का संचयन राजकमल ने छापा है। वही लेख आपको यहां मिलेंगे
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